Thursday 10 October 2013

कविजी का मोस्ट वांटेड बेटा!


मेरे एक साहित्यिक मित्र थे। वीर रस की कविताएं लिखते थे। पेशे से टीचर थे। अभी हैं लेकिन अब न कवि हैं, न मित्र हैं, न टीचर हैं। जो हैं, सो हैं। बड़ी सांसत में हैं।

मित्रता के दिनो में उन्हे जब रत्ननुमा-पुत्र की प्राप्ति हुई तो उनका पूरा गांव उल्लास में शामिल हो गया था। दूर-दूर से नाते-रिश्ते के लोग जुटे। खूब बधाइयां मिलीं। तब आजकल की तरह गिफ्टबाजी नहीं होती थी। पहुंचना, स्नेहालाप, मित्रालाप ही पर्याप्त रहता था।

पेशे के चक्कर में अपना गांव-पुर, कस्बा-शहर छूटा तो उस जन्मोत्सव के आठ वर्ष बाद लगभग डेढ़ दशक तक उनसे मुलाकात न हो सकी। वह मुझसे उम्र में काफी बड़े थे। बड़े पूजा-पाठ, मन्नतों के बाद वह इकलौता पुत्र पैदा हुआ था। पिता की ही तरह हृष्ट-पुष्ट। अपने शिक्षक पिता की साइकिल पर आगे बैठ कर रोजाना मैंने उसे बड़ा होकर स्कूल जाते देखा था।

सत्रह साल बाद अपने गांव-पुर पहुंचा तो पुराने दोस्तों-मित्रों के संबंध में हाल-चाल लेने लगा। जिनसे अब तक इक्का-दुक्का निभती रही थी, उन्हीं में एक मित्र ने उस सत्तर-अस्सी के दशक वाले साहित्यिक मित्र का दर्दनाक वाकया भी कह सुनाया, आह-उह करते हुए कि अरे उन महोदय की वीर-कविताई की तो ऐसी-तैसी हो चुकी है।

संक्षिप्ततः पूर्व साहित्यिक मित्र का ताजा एक दशक का जिंदगीनामा कुछ इस तरह है।

पूर्व कविमित्र का इकलौता बेटा बड़ा होकर मोस्ट वांटेड हो गया। पुलिस की टॉप टेन लिस्ट में पहले नंबर पर। पूरा इलाका कांपने लगा। थानेदार को गोली से उड़ा दिया। ठेके पर मर्डर करने लगा। गिरफ्तार होकर जेल गया तो एक डिप्टी जेलर को ठिकाने लगा दिया। इस तरह वह जिले का सबसे बड़ा गुंडा बन गया। वीररस के कवि का वीर पुत्र।

उस दिन मित्र ने बताया कि अब तो बेचारे कविजी फिरौती के पैसे ठिकाने लगाते हैं। वीरपुत्र ब्लॉक प्रमुख बन गया है। जेल से ही नेतागीरी करता है। वीरकवि की बहू विधानसभा चुनाव लड़ने वाली है। एक कुख्यात मुस्लिम माफिया उसे टिकट दिलाने वाला है।

शायद ही कभी कोई अचंभे में रो पड़ा हो। उस दिन मैं पूर्व कविमित्र की व्यथा-कथा सुन कर अचंभे से रो पड़ा था। कितनी अच्छी कविताएं लिखते थे वह। वीर रसावतार पंडित श्याम नारायण पांडेय के सबसे प्रिय शिष्यों में गिने जाते थे। अब अपने पुत्र की माफिया-राजनीतिक यश-प्रतिष्ठा से काफी आह्लादित रहते हैं। दूर-दूर तक नयी पीढ़ी के लोग जानते हैं कि वो फलाने सिंह के पिता हैं। जिले के साहित्यकारों को अब कोई आंख नहीं दिखा सकता है। उनके पास सब-कुछ है, बस कविता नहीं है।

उस कविजी की कुछ पंक्तियां मुझे आज भी याद है............

अंड्डसंड उडंड रटि ढाल्लत ब्रांडी ब्रांड,
अक्क-बक्क झक्कत झड़क्क प्रकट्यो पुत्र प्रचंड,
चंड-चंड करि खंड-खंड खुरकस्सि कपट धरि
पग्गअगति गड़गब्ब............

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