Monday 4 November 2013

उन्हे नहीं सुहाते 'पछताते, पथ पर आते लोग'

जयप्रकाश त्रिपाठी


ये जो है न फेसबुक....जो रोज यहां आते हैं प्रायः, टिके रह जाते हैं घंटों। दिन-दिन भर। अपने आसपास से मुक्त। विचरते हुए-से। कई एक रचते हैं। खेलने वाले भी। अनेकशः सिर्फ अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए पल-दो-पल की। अथवा उनमें से कई-एक किसी-न-किसी व्यावसायिक मकसद से भी। कई एक उपस्थितियां छिपे एजेंडे वाली। कई छिछोरेबाजी के लिए। शोहदे भी।

लेकिन वे सबसे ज्यादा, जो अपने दर्द साझा करते हैं यहां। अपने आसपास, अपने रोजमर्रा के चित्र खींचते हुए। कविताएं, कहानियां, वक्तव्य, अनुभवों की सौगात उलीचते हुए। यहां आने का उद्देश्य उलझा हुआ नहीं होता है उनका। कुछ-एक पंक्तियों पर नजर पड़ते ही वे खींच लेते हैं हमे अपने निकट। बहुत पास तक।

जैसे सुबह कभी शहर की सड़कों से गुजरते हुए खाली ठेले लिए सब्जी मंडी की ओर तेज रफ्तार से जाते हुए लोग दिख जाते हैं। कई-एक दूध के लिए हाथ में खाली डिब्बे लटकाए। बच्चे को स्कूल ले जाने वाली बस का इंतजार करते। दुकान खोलते हुए। और बगल की सड़क पर झाड़ुओं से धूल के बवंडर बरसाते हुए भी।

और वे भी तो! सुन्नर-मुन्नर कुत्तों की चेन थामे आम आदमियों पर हिकारत से नजर डाल कर स्वयं की महानता से खामख्वाह अभिभूत-आह्लादित होते हुए। उनके जैसों के पास महानता की सीढ़ियां, कई-कई तरह के पायदान ऊपर तक जाने के लिए। उनके घरों से अक्सर हार्ट अटैक की खबरें आती हैं। मौत भी उन्हें ज्यादा परेशान नहीं करती है।

नाली-कचरे की गुड़-मुड़र में अधजगी कुतिया की तरह पसरी हुईं सुबह की सड़कों से कई एक जन अपनी बोल-भाषा में बतियाते हुए दिख जाते हैं। जैसे कि क्यों आ गये हों वे यहां। क्योकि इधर के कचरे के ढेरों में भी मामूली हाथ-पैर चलाकर ज्यादा-कुछ मिल जाता होगा। उनमें कई एक के पास अपनी लकड़ी की गड़ारियों वाली ठेल होती हैं। एक ठेल पर उसकी अपाहिज स्त्री भी उठंगी हुई, कचरे के ढेर पर पॉलीथिन की एक-एक थैली खंगालते सिर्फ अपने पति को बड़े गौर से देखती हुई। एकटक, टुकर-टुकर।

जिनके हाथ में झबरीले कुत्ते की चेन हो। लगता है, उनके मन में शायद इस तरह के प्रश्न भी सुबह-सुबह जरूर कौंधते होंगे कि ऐसे कचरे वाले लोग इस सुंदर दुनिया में क्यों रहना चाहते हैं। इनके नहीं होने पर दुनिया और खूबसूरत हो जाएगी।इन्हें नहीं होना चाहिए। हों-न-हों, क्या फर्क पड़ता है। जीयें या मरें। छीईईईई...

ऐसा सोचने वालों के बारे में शायद उनके ऊपरी पायदान पर बैठे लोग भी इसी तरह के प्रश्न टीपते-टकटोरते रहते होंगे। वे लोग, जिनके नौकर कुत्ते की चेन थामे दिख जाते हैं । वे खुद नहीं।

वे बेचारे से।

नहीं पता कि हर किसी की चेन किसी-न-किसी की अंगुलियों में भिंची हुई। किसी न किसी की अक्ल तक फंसी-घुसी हुई रहती है।

जिन्हें कि ' दो टूक कलेजे को करते, पछताते, पथ पर आते' लोग रत्ती भर नहीं सुहाते हैं।

सचमुच दुनिया को जानवरों के बाड़े में तब्दील कर देने के लिए उनकी भी बेहूदा मशक्कत उनसे ऊपर के लोगों के लिए कितने काम की रहती होगी!

नहीं?

नबीला एक दो दिनों में गांव लौट जाएगी


ब्रजेश उपाध्याय

इस हफ़्ते अमरीका ने दो नए चेहरे देखे. एक वो चेहरा जो अपने दफ़्तर में बैठ कर हज़ारों मील दूर छिपे चरमपंथियों पर निशाना लगाता है और दूसरा वो चेहरा जो अनजाने में उसका शिकार बनता है. एक था मानसिक रूप से टूट चुके ब्रैंडन ब्रायंट का चेहरा जो ड्रोन ऑपरेटर के तौर पर काम करते थे, दूसरा ज़िंदगी और उम्मीद से भरपूर नबीला का चेहरा. नौ साल की नबीला. मासूम, ख़ूबसूरत, नीली आंखें, सर पर रखे दुपट्टे के छोर को उंगलियों में लपेटती, कभी मुस्कराती, कभी बोर होकर उबासी लेती, कभी टेबल पर रखे कागज़ पर लकीरें खींचतीं नबीला. उत्तरी वज़ीरिस्तान से आई इस बच्ची ने एक साल पहले ड्रोन हमलों में अपनी दादी को खो दिया, ख़ुद भी घायल हुई लेकिन ज़िंदा बच गई. जब अमरीकी कांग्रेस के कुल पांच मेंबर और दुनियाभर की मीडिया के सामने नबीला अपनी कहानी पश्तो भाषा में सुना रही थी तो अंग्रेज़ी में उसका अनुवाद कर रही महिला का गला भर आया, आंखें नम हो गईं. वहां बैठी कुछ और महिलाओं की भी आंखें नम थीं. एक ने कहा, "मैं भगवान से मनाती हूं कि तुम्हें फिर कभी ड्रोन की आवाज़ न सुनाई दे." वहां बैठा मैं एकटक नबीला को देख रहा था. अचानक से उनकी नज़र मुझ पर गई और जिस तरह से छोटे बच्चे कभी-कभी किसी अनजाने चेहरे को देखकर मुस्करा देते हैं, वैसे ही मुस्करा दीं. कांग्रेस में काम करने वाली एक महिला ने उसके सामने आईसक्रीम के दो कप लाकर रखे. पहले वो झिझकी, फिर एक चम्मच से चखा और फिर से वही मुस्कान. मैं तबतक उसके बिल्कुल पास खड़ा था, पूछा... "अच्छी हैं आईसक्रीम? उसने कुछ नहीं कहा. सर झुकाकर खाती रही." ये पहली बार था जब वो अपने गांव से निकली थी और सीधा वाशिंगटन पहुंची. मैने उसके भाई ज़ुबैर से पूछा, "नबीला को यहां कैसा लगा? जवाब था, 'ये बेहद खुश है. कहती है सड़कें कितनी चौड़ी हैं, लोग कितने प्यार से मिलते हैं." यही सड़कें उन दफ़्तरों तक भी जाती हैं जहां बैठकर कुछ लोग नबीला की दुनिया मे छिपे चरमपंथियों पर निशाना लगाते हैं. ब्रैंडन ब्रायंट ड्रोन ऑपरेटर का काम करते थे. ख़तरनाक चरमपंथी हों या बेगुनाह लोग, अपने कंप्यूटर पर दिख रही जीती-जागती तस्वीरों को मांस के लोथड़ों में बदलता देखना उन्हें अंदर से कहीं तोड़ चुका है. वो मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, "मैं जब अफ़गानिस्तान में एक मकान पर निशाना लगा रहा था तो कोई भागता हुआ नज़र आया. मुझे लगा कि कोई छोटा बच्चा है. एक और विशेषज्ञ की सलाह ली तो उसने कहा कि बच्चा नहीं कुत्ता है. हमला हुआ... मलबे की रिपोर्ट में न तो बच्चे का ज़िक्र था, न कुत्ते का." ब्रायंट ने नौकरी छोड़ दी है. उनके साथियों ने उनका मज़ाक भी उड़ाया. दूर से ही सही, किसी की जान लेना आसान काम नहीं होता. बल्कि कांग्रेस के एक सदस्य के शब्दों में "कौन जिएगा, कौन मरेगा, इसका फ़ैसला हम कर रहे होते हैं... जबकि ये फ़ैसला भगवान का होना चाहिए." इन दोनों चेहरों ने अमरीका की उलझन बढ़ा दी है. अबतक यहां एक ही सोच हावी रही है कि ये वो इलाका है जहां से तालिबान और अल क़ायदा दुनिया पर हमला करने की तैयारी करते हैं और ड्रोन से बेहतर कोई हथियार नहीं है इन्हें काबू में लाने के लिए. नबीला और ब्रैंडन ब्रायंट के चेहरों ने उस सोच पर सवाल उठाए हैं. अब यहां ये बहस भी हो रही है कि जो ख़तरनाक चरमपंथी कहे जाते हैं उन्हें बिना किसी सुनवाई के मौत की सज़ा देना क्या सही है? दूसरी तरफ़ ये सवाल ये भी उठते हैं कि अगर चरमपंथी बेगुनाहों को मारने में नहीं हिचकते तो उन्हें सभ्य समाज की सहूलियतें क्यों मिलें? नबीला एक दो दिनों में वापस अपने गांव पहुंच जाएगी. ब्रैंडन ब्रायंट अभी कुछ दिन डॉक्टरों के चक्कर लगाएंगे. इसी हफ़्ते फिर से एक ड्रोन हमला हुआ है. पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियां कह रही है कि कुछ बड़े चरमपंथी मारे गए हैं. पाकिस्तान ने अपनी सीमा के अंदर हुए हमले के लिए अमरीका की एक बार फिर से आलोचना की है. (बीबीसी से साभार)

अमरीकी जासूसों के निशाने पर पूरी दुनिया


रूसी संसद के निचले सदन, राजकीय दूमा की अंतर्राष्ट्रीय संबंध समिती के अध्यक्ष अलेक्सेय पुश्कोव ने अपने ट्विटर माइक्रोब्लॉग में लिखा है कि अमरीका ने पूरी दुनिया में जासूसी करने के लिए एक अभूतपूर्व संजाल स्थापित किया हुआ है। पुश्कोव के शब्दों में, अमरीकी खुफिया सेवा के उप-प्रमुख जेम्स क्लेप्पर ने खुद माना है कि अमरीकी ख़ुफिया संजाल पूरी दुनिया में जासूसी का सबसे बड़ा संजाल है। अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी में 35 हज़ार लोग काम करते हैं और इसका वार्षिक बजट 11 अरब डॉलर है। इस बीच जर्मन गृह मंत्रालय की राय में, जासूसी कांड के सिलसिले में एक गवाह के रूप में एडवर्ड स्नोडेन से मास्को में पूछताछ की जा सकती है। यह बात जर्मन गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कही है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार इस पूर्व अमरीकी जासूस को जर्मनी में शरण देने के पक्ष में नहीं है। जर्मन नेताओं के बीच इस मुद्दे पर ज़ोरदार बहस जारी है। उदाहरण के लिए, जर्मनी की वामपंथी पार्टी के एक नेता बर्न्ड रिक्सिंगर ने कहा है कि जर्मन सरकार को चाहिए कि वह एडवर्ड स्नोडेन को अपने वहाँ बुलाकर उससे पूछताछ करे। एक अन्य जानकारी के मुताबिक गूगल कम्पनी के प्रबन्धकों ने अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से राष्ट्रीय सुरक्षा एजेन्सी की हरकतों की शिकायत की है। कम्पनी की प्रबन्ध परिषद के अध्यक्ष एरिक श्मिट ने समाचार-पत्र वॉल स्ट्रीट जरनल को यह जानकारी दी।  विगत अक्तूबर के अन्त में अमरीकी गुप्तचर संगठनों के पूर्व एजेन्ट एडवर्ड स्नोडेन द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेज़ों से यह जानकारी मिली थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेन्सी 'मसकुलर' के कोडनाम से एक प्रोग्राम चला रही है और इण्टरनेट कम्पनियों गूगल और याहू के सर्वरों से सूचनाओं को रिकार्ड कर रही है। 'मसकुलर' नामक यह प्रोग्राम राष्ट्रीय सुरक्षा एजेन्सी को लाखों-करोड़ों ई०मेल सन्देशों को रिकार्ड करने की सम्भावना देता है। गूगल और याहू ने कहा है कि उन्होंने अमरीकी गुप्तचर कम्पनियों को ई०मेल सन्देश रिकार्ड करने की इजाज़त नहीं दी थी। एनएसए की जासूसी गतिविधियों की जानकारी देने वाले एडवर्ड स्नोडेन को अमेरिका ने माफ करने से इनकार किया है. व्हाइट हाउस के सलाहकार डैन फीफर ने कहा स्नोडेन ने कानून का उल्लंघन किया है और उनके प्रति कोई नरमी नहीं बरती जाएगी. पिछले हफ्ते जर्मनी की ग्रीन पार्टी के नेता हंस क्रिस्टियान श्ट्रोएबेले की स्नोडेन से मुलाकात के बाद अमेरिकी संसद के प्रमुख सदस्यों, खुफिया मामलों की समिति के सदस्यों और व्हाइट हाउस सलाहकार डैन फीफर ने इस बारे में बातचीत की. अमेरिकी न्यूज चैनल से बात करते हुए फीफर ने कहा, "स्नोडेन को अमेरिका वापस आना होगा और कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा." अमेरिकी सांसद डायेन फींस्टीन ने भी कहा है कि स्नोडेन ने नरमी का वह मौका गंवा दिया. उन्होंने कहा, "अगर वह फोन उठाकर व्हाइट हाउस की खुफिया मामलों की समिति से कहते कि मेरे पास कुछ ऐसी जानकारी है जो आपके लिए महत्वपूर्ण है, तो उनके पास मौका हो सकता था." फींस्टीन ने आगे कहा, "ऐसे में हम उनसे मिलते और इस जानकारी पर गौर करते. लेकिन वैसा हुआ नहीं और उन्होंने राष्ट्र को भारी नुकसान पहुंचाया है." वह मानती हैं कि स्नोडेन पर मुकदमा चलना ही चाहिए. अमेरिका में सरकार के खिलाफ जासूसी के आरोप झेल रहे एडवर्ड स्नोडेन को अगस्त में रूस में शरण मिली. अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के नेता माइक रॉजर्स ने भी कहा कि स्नोडेन को आरोपों से मुक्ति देने की कोई वजह नहीं दिखती. रॉजर ने कहा, "अगर वह वापस आकर इस बात की जिम्मेदारी लेने को तैयार हों कि उन्होंने सरकारी जानकारी की चोरी की और उसका दुरुपयोग किया, तो मैं उनसे बातचीत के लिए तैयार हूं." साथ ही उन्होंने कहा स्नोडेन ने जो किया है उसकी उन्हें जिम्मेदारी लेनी होगी. इस बातचीत में वह बता सकते हैं कि उन्होंने जो किया वह क्यों किया.  एडवर्ड स्नोडेन से पिछले हफ्ते जर्मनी के ग्रीन पार्टी के नेता हंस क्रिस्टियान श्ट्रोएबेले ने मुलाकात की. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के फोन पर एनएसए की जासूसी की खबरों के बाद से यूरोप में अमेरिका के खिलाफ नाराजगी और बढ़ गई. एनएसए की जासूसी गतिविधियों की जानकारी देने वाले एडवर्ड स्नोडेन से पिछले हफ्ते जर्मनी के ग्रीन पार्टी के नेता हंस क्रिस्टियान श्ट्रोएबेले ने मुलाकात की और बर्लिन आकर एनएसए के खिलाफ गवाही देने का न्यौता दिया था. फींस्टीन ने उनकी इस मुलाकात पर भी सवाल उठाए और कहा कि जहां तक सहयोगी राष्ट्रों की आपसी बात है, उनके निजी फोन की जासूसी करना, खासकर नेताओं की, यह एक जासूसी हरकत से ज्यादा राजनीतिक जिम्मेदारी है. उन्होंने यह भी कहा, "हमें इस मामले को ध्यान से देखने की जरूरत है, और कुछ अपवाद को छोड़ राष्ट्रपति वह कर रहे हैं." एक दूसरे इंटरव्यू में अमेरिकी केंद्रीय खुफिया समिति और एनएसए के पूर्व प्रमुख माइकल हेडेन ने कहा कि जासूसी के पूरे मामले में जर्मनी के लिए ज्यादा खराब स्थिति है. उन्होंने कहा, "मैं चांसलर के लिए शर्मिंदगी का अनुमान लगा सकता हूं. इस मामले ने उनके लिए खराब राजनीतिक स्थिति पैदा की है." जर्मन ग्रीन पार्टी के श्ट्रोएबेले ने स्नोडेन से मिलकर उन्हें आश्वासन दिया कि उनके हकों का सम्मान किया जाएगा. मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था कि अगर स्नोडेन बर्लिन ना भी आ सके तो उस हाल में जर्मनी से वकीलों को बयान दर्ज करने के लिए रूस भेजा जा सकता है. अमेरिका पहले ही स्नोडेन के पासपोर्ट को अमान्य कर चुका है और जर्मनी समेत कई अन्य देशों से स्नोडेन को अमेरिका वापस भेजने के लिए भी कहा गया है. स्नोडेन ने कहा था कि वह जर्मन संसद में अमेरिकी जासूसी के बारे में गवाही देने के लिए भी तैयार है, बशर्ते उनकी सुरक्षा की गारंटी दी जाए. अमेरिका को लिखे अपने खत में स्नोडेन ने उन पर लगे आरोपों से उन्हें मुक्त करने की मांग की थी. साथ ही स्नोडेन ने यह भी लिखा था, "जो लोग सच बोल रहे हैं वह अपराध नहीं कर रहे."