Sunday 15 December 2013

अन्ना, 'आप' और लोकपाल का सच


जयप्रकाश त्रिपाठी

अन्ना के संतुष्ट होने-न-होने से सरकारी लोकपाल की सच्चाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता....
याद करिए तीन साल पहले रामलीला मैदान और जंतर-मंतर दिल्ली के दरम्यान लोकपाल-लोकपाल का शंखनाद कर रहा था।
और उसके गर्भ से पैदा हुई आम आदमी पार्टी। दरकार थी, पहले सत्ता, फिर आगे की लड़ाई। जनता के लिए कोई भी लड़ाई सिर्फ सत्ता की मोहताज नहीं होती है, फिर भी आम आदमी पार्टी ने कोई जनविरोधी काम नहीं किया।
'आप' ने अभी तक सिर्फ इतना किया, जनता को सोचने का जोश दिया कि आम आदमी आज भी उतना ही ताकतवर है, 1947 की तरह, 1977 की तरह...
अब अन्ना इस तरह सरकारी लोकपाल पर मुहर लगा रहे हैं, जैसे वही अकेले वो लड़ाई लड़ रहे थे। वह ऐसा क्यों कर रहे हैं, जनता बहुत कुछ समझ रही है। अन्ना जनता से हैं, जनता अन्ना से नहीं है।
वो लड़ाई न अन्ना अकेले लड़ रहे थे, न केजरीवाल, दोनो को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए। वह लड़ाई जनता लड़ रही थी। दोनो निमित्त थे, माध्यम थे....बस। तो कानाफूसी कर लोकपाल पर मुहर लगाने की ठेकेदारी जनता ने न अन्ना को दी है, न केजरीवाल को। अन्ना के संतुष्ट होने न होने से सरकारी लोकपाल की सच्चाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
क्या अन्ना ने जन अदालत से मंजूरी लेकर सरकारी लोकपाल पर मुहर लगाई है? केजरीवाल जो सवाल उठा रहे हैं, उसका अन्ना के पास क्या जवाब है, साफ-साफ सामने आना चाहिए....
यह समय अन्ना और केजरीवाल में फासला बढ़ने-न-बढ़ने का रागदरबारी अलापने का नहीं है, ये समय उस बहस के सार्वजनिक होने का है, जो तीन साल पहले दिल्ली में उमड़ी 'जनता के लोकपाल' पर केंद्रित हो...
अन्ना ने क्या गजब का तर्क दिया है कि '..अगर किसी को लगता है कि विधेयक में कमियाँ हैं तो इसके पारित हो जाने के बाद उन्हें अनशन करना चाहिए।' यानी हमारी आंखों के सामने पहले सेंधमारी हो जाए, फिर हम थाने में रिपोर्ट लिखाने जाएं....
अन्ना साफ-साफ जन जवाबदेही से बचते हुए सरकारी लोकपाल से स्वयं को संतुष्ट बताते हैं तो मान लिया जाना चाहिए कि वह अब जनता नहीं, कांग्रेस के साथ हैं!
अन्ना जनता के साथ हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना कि लोकपाल विधेयक संसद में पास हो, न हो। ढेर सारे विधेयक पास होकर पड़े हुए हैं। खूब भ्रष्टाचार हो रहा है, चारो तरफ लूटमार मची हुई है। विधेयक का सच जानना तो देश के सामने सबसे बड़ी नजरी है 'मनरेगा'। सरकारी लूटने के लिए गली-गली में चोर पैदा हो गए हैं।
सरकारी लोकपाल से संतुष्ट हो रहे अन्ना या गैरकांग्रेसी जनता को बताएं न कि सीबीआई की स्वायत्तता का मसला क्या कोई मामूली बात है? सीबीआई की परतंत्रता मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार को सत्तासीन पार्टी की मर्जी के हिसाब से अपराधी साबित करने-न-करने की आजादी देती है।