Tuesday 11 February 2014

कैलाश गौतम

फूल हंसो, गंध हंसो, प्यार हंसो तुम।
हंसिया की धार बार-बार हंसो तुम।

हंसो और धार-धार तोड़ कर हंसो,
पुरइन के पात लहर ओढ़ कर हंसो,
जाड़े की धूप आर-पार हंसो तुम,
कुहरा हो और तार-तार हंसो तुम।

गुबरीले आंगन, दालान में हंसो
ओ मेरी लौंगकली पान में हंसो,
बरखा की पहली बौछार हंसो तुम
घाटी के गहगहे कछार हंसो तुम।

हरस‌िंगार की फूली टहन‌ियां हंसो,
निदियारी रातों की कुहनियां हंसो,
बांहों के आदमकद ज्वार हंसो तुम,
मौसम की चुटकियां हजार हंसो तुम।


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