Wednesday 19 March 2014

हँसो हँसो जल्दी हँसो / रघुवीर सहाय

हँसो हँसो जल्दी हँसो
हँसो, तुम पर निगाह रखी जा रही है
हँसो, अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट
पकड़ ली जाएगी और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे,
हँसते हँसते किसी को जानने मत दो, किस पर हँसते हो
सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त हो कर
एक अपनापे की हँसी हँसते हो
जैसे सब हँसते है, बोलने के बजाय
जितनी देर ऊँचा गोल गुंबद गूँजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
गूँजते थमते-थमते फिर हँसना
क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फँसे
अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे
हँसो, पर चुटकुलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हों जो किसी ने सौ साल पहले दिए हों
बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों
जैसे गरीब पर किसी ताकतवर की मार
जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता
उस गरीब के सिवाय
और वह भी अक्सर हँसता है
हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जाएँ
उनसे हाथ मिलाते हुए
नजरें नीची किए
उनको याद दिलाते हुए हँसो
कि तुम कल भी हँसे थे।


अरे अब ऐसी कविता लिखो / रघुवीर सहाय

अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि जिसमें छंद घूम कर आय
घुमड़ता जाय देह में दर्द
कहीं पर एक बार ठहराय,
कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूँ
वही दो बार शब्द बन जाय
बताऊँ बार-बार वह अर्थ
न भाषा अपने को दोहराय,
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि कोई मूड़ नहीं मटकाय
न कोई पुलक-पुलक रह जाय
न कोई बेमतलब अकुलाय,
छंद से जोड़ो अपना आप
कि कवि की व्यथा हृदय सह जाय
थाम कर हँसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाय।


औरत की जिंदगी / रघुवीर सहाय

कई कोठरियाँ थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा।


हमारी मुठभेड़ / रघुवीर सहाय

कितने अकेले तुम रह सकते हो
अपने जैसे कितनों को खोज सकते हो तुम
हम एक गरीब देश के रहने वाले हैं इसलिए
हमारी मुठभेड़ हर वक्त रहती है ताकत से
देश के गरीब रहने का मतलब है
अकड़ और अश्लीलता का हम पर हर वक्त हमला।




No comments:

Post a Comment