Saturday 20 September 2014

कविता पाठ / चन्दन राय

कभी कभी शब्द ही नहीं, उनमे निहित गहरे अर्थों को भी पढ़ो
ठहरों अमुक्त आह / वाह भर हलन्तों और विसर्गों पर भी
सुनो कवि ने जीवन रचा है अपने शब्दों में जियो एक-एक शब्द कविता
कविता अन्तत: उदारता की प्रतिमूर्ति है परोपकार का प्रतिरूप है
कविता वह अशेष नैतिकता है जिसने बचाए रखी है जड़वत हृदयों में मनुष्यता !
कविता को पढ़ने के लिए चाहिए एक आन्तरिक विनम्रता
वह चाहती है एक प्रेमजनित अनुनय-बोध, और यही एकाग्रता देगी
कविता के आकण्ठ प्रतिपाद्य का पूर्ण आन्तरिक उत्कर्ष !
क्योंकि कविता अहंकार भरी छातियों से स्वतः हाथ खींच लेती है !
कविता पूर्वाग्रह भरे विवेकशून्य मस्तिष्कों की दासी नहीं है
वह चाहती है एक कलाशिष्ट-आलिंगन, एक चिन्तनशील प्रेमपूर्ण प्रज्ञा सामीप्य
कविता हमारे हिये पर माँ के दुलार का नरम हाथ हो सकती है
बशर्ते कविता बहती हो आप में जीवन की अनिवार्यता की तरह !

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