Tuesday 23 September 2014

अपसंस्कृति फैला रहीं नंग-धड़ंग नायिकाएं / निर्मलेंदु

बॉलिवुड ऐक्ट्रेस दीपिका पादुकोण और टाइम्स ऑफ इंडिया वेबसाइट के ‘क्लीवेज शो’मामले में अखबार ने जिस तरह दीपिका का पाखंड को उजागर किया, उसमें गलत क्या है?  भारत जैसे संस्कृति प्रधान देश में बॉलिवुड ऐक्ट्रेसेज जिस तरह अपसंस्कृति फैला रही हैं, क्या वह जायज है? वह महिलाओं के सम्मान की बात करती हैं! महिलाओं पर जुर्म होता है, तो क्या आप विरोध करती हैं? पहले आपको खुद उन भूमिकाओं से बचना चाहिए, जिनमें देह प्रदर्शन होता है। अगर आप खुद अपने शरीर का प्रदर्शन करेंगी, तो लोग तो ऊंगली उठाएंगे ही। बचपन से ही भारतीय परिवारों की लड़कियों को यह हिदायत दी जाती है कि वे कोई ऐसा गलत काम न करें, जिससे कोई ऊंगली उठाए। सच तो यह है कि फिल्म इंडस्ट्री में ग्लैमर के नाम पर और ग्लैमर की दुहाई देकर, जिस तरह से देह प्रदर्शन किया जाता है, क्या दीपिका जी, वह सब जायज है?
इन सभी बातों को गहराई से समझने के लिए पूर्व में दीपिका की ही ओर से फेसबुक पर लिखे उनके एक संदेश पर गौर करें, जिसमें खुद उन्होंने कहा था, ‘मुझे अच्छी तरह से अपने काम के बारे में पता है। मेरा काम बहुत डिमांडिंग है, जो मुझसे बहुत कुछ करवाना चाहता है। किसी रोल की मांग हो सकती है कि मैं सिर से पैर तक ढकी रहूं या पूरी तरह नग्न हो जाऊं। तब एक ऐक्टर के तौर पर यह मेरा निर्णय होगा कि मैं यह करना चाहती हूं या नहीं। यह फर्क समझना होगा कि रोल और रियल में अंतर होता है और मेरा काम मुझे दिए गए रोल को जोरदार तरीके से निभाना है।’
दीपिका जी, अगर आपकी बात को सही मान भी लिया जाए, तो जब आप इसे बेबाकी से स्वीकार करती हैं कि फिल्म के डिमांड पर आप ऐसा कोई भी उल-जुलूल निर्णय ले सकती हैं, तो फिर टाइम्स ऑफ इंडिया वेबसाइट की इस मामूली से वीडियो पर आप आखिर इतना बतंगड़ क्यों बना रही हैं? वैसे, देखा जाए, तो वेबसाइट का तर्क भी काफी हद तक जायज है कि तमाम मैग्जीन और अन्य मौके पर जब दीपिका अपने शरीर का प्रदर्शन करते नहीं हिचकतीं, स्टेज पर डांस करते हुए, किसी मैगजीन के लिए पोज देते वक्त और फिल्मों के प्रोमोशनल फंक्शन में ग्लैमर के नाम पर तस्वीर खिंचवाते वक्त जब‘क्लीवेज शो’ होता है, तो फिर उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आता? मैं पूछना चाहता हूं दीपिका जी से, तब आप कौन सा रोल प्ले कर रही होती हैं?
हालांकि दीपिका और वेबसाइट के इस घमासान के बीच हकीकत को सोनम कपूर ने काफी बारीकी से समझा। तभी तो उन्होंने लगे हाथ दीपिका को नसीहत देते हुए कहा कि ‘जिस दिन महिलाएं खुद को एक कमोडिटी (वस्तु) की तरह पेश करना बंद कर देंगी, उसी दिन से लोग भी महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदल लेंगे।’सोनम कपूर की यह बात कहीं न कहीं, भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता और यहां के रहन-सहन को इंगित करती है, जिसे दीपिका को समझना होगा।
दरअसल, जब संस्कार की बात आती है, तो हमें खुद अपने आप पर नियंत्रण रखना पड़ेगा। हम जब खुद सही रास्ते पर चलेंगे, तो हम दूसरों की कमियों पर प्रहार कर पाएंगे। लेकिन यदि हम खुद गलत होंगे, तो फिर हमें दूसरों पर उंगली उठाने का कोई अधिकार ही नहीं है। हमें याद रखना होगा कि ईमानदारी से किया गया कार्य, हमें प्रगति की ओर ले जाता है। एक बात हमें याद रखनी होगी कि यदि दुनिया में ईमानदारी छा जाए, तो अनेकों अनेक समस्याओं को जन्मने का मौका ही नहीं मिलेगा। याद रहे कि अर्थ का अर्जन शुद्ध साधन से किया जाय व उसका सदुपयोग किया जाए, तो वह अर्थ सार्थक है, वरना वह अनर्थ है। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि आप दूसरों की बुराइयों को देखते हो, जरा आंख मूंद यह भी खोजो आपमें कितनी बुराइयां हैं?

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