Sunday 7 September 2014

अंधेरे में / मुक्तिबोध

दुर्लभ चित्र में अपनी पत्नी शांता के साथ गजानन माधव मुक्तिबोध
(बुधवार 11 सितंबर 2014 को है मुक्तिबोध की पचासवीं पुण्यतिथि)।
प्रस्तुत है मुक्तिबोध की कविता 'अँधेरे में' का एक अंश..

सब चुप, साहित्यिक चुप और कविजन निर्वाक्,
चिन्तक, शिल्पकार, नर्तक चुप हैं
उनके ख़याल से यह सब गप है, मात्र किंवदन्ती।
रक्तपायी वर्ग से नाभिनाल-बद्ध
ये सब लोग नपुंसक भोग-शिरा-जालों में उलझे।
भव्याकार भवनों के विवरों में छिप गये
समाचारपत्रों के पतियों के मुख स्थल।
गढ़े जाते संवाद, गढ़ी जाती समीक्षा,
गढ़ी जाती टिप्पणी जन-मन-उर-शूर।
बौद्धिक वर्ग है क्रीतदास,
किराये के विचारों का उद्भास।
बड़े-बड़े चेहरों पर स्याहियाँ पुत गयीं।
नपुंसक श्रद्धा
सड़क के नीचे की गटर में छिप गयी ।

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