Tuesday 21 October 2014

दिवाली का अंधेरा / जयप्रकाश त्रिपाठी

प्रकाशपर्व से सजेधजे बाजार, विज्ञापनों से अघाये अखबार और चैनल, छोटे-बड़े पर्दे पर धारावाहिकों और फिल्मों के धूम-धड़ाके, महानगरों में सितारों, नेताओं, अधिकारियों, ठेकेदारों, मंत्रियों, दलालों, सफेदपोश लुटेरों, ऊपर की कमाई-धमाई वालों की रंगारंग महफिलें, अमीरी का गर्दभगान, पूंजी और बाजार की महामारी से त्रस्त गरीब-गुरबा की लुटती-पिटती आस्था -
जो ठनठन गोपाल, जिनकी जेब खाली,
उनकी खिल्ली उड़ाएं धनतेरस-दिवाली....

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