Saturday 25 October 2014

भाड़ में जाये त्योहार / जयप्रकाश त्रिपाठी


कई वर्षों में पहली बार परसो, कल और आज तीन दिन लगातार देखा कि अपने मोहल्ले के एक रहस्यमय मठ के फाटक पर रिक्शेवाले कतारबद्ध सवारियों के इंतजार में जमे हुए हैं। आज सुबह ब्लड शुगर का इंजेक्शन लगवाने के बाद उधर से पैदल गुजरते समय उन्ही में से एक रिक्शेवाले के साथ हो लिया। त्योहार से भी उनके बेखबर होने का सबब जानना चाहा। वह बोला - आप के पास कोई पुरानी शर्ट हो तो दे दीजिए। पहन कर अपने गांव जाना चाहता हूं। इस बार गांव लौटने भर को किराया नहीं जुटा पाया। मैंने कहा- नई शर्ट से काम चला लो, अभी ले आता हूं। एक्सिडेंट के बाद को मां को देखने आई छोटी बेटी खरीद कर दे गई थी। ....मुझे लगा कि ज्यादातर रिक्शेवालों की कमोबेश मजबूरियां एक जैसी। फुर्सत किसे है आज के जमाने में उनका दुख-दर्द जानने की... सबके सिर त्योहार की मस्ती। भाड़ में जाये ऐसी दुनिया।  

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