Friday 10 October 2014

ये हाल है अपने यूपी का.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बजाय लॉ एंड आर्डर ठीक करने के, लखनऊ से लेकर दिल्ली तक के अखबारों में फुल-फुल पेज कई दिनों तक लगातार विज्ञापन देकर अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहा है. सबको पता है कि ये विज्ञापन असल में सरकार के कामकाज का प्रसार-प्रचार नहीं बल्कि अखबार वालों को / मीडिया वालों को मिला-दिया गया रिश्वत है. इसी रिश्वत मिलने, न मिलने से अखबार वाले / मीडिया वाले तय करते हैं कि उन्हें सरकार विरोधी खबरें प्रमुखता से छापनी है या नहीं.. पर जिस स्टेट में खबर छापने पर मंत्री के लोग पत्रकार को पीटते हों और पुलिस वाले एफआईआर न लिखते हों, उस स्टेट की हालत के बारे में अलग से विज्ञापन देकर बताने की भला जरूरत क्या है. वो तो Amitabh Thakur जैसे आईपीएस के कारण, जो सत्ता की नजरों में चुभते हैं लेकिन जनता को भाते हैं, मार खाए पत्रकार की आवाज उठ पाई और हमारे-आप तक पहुंच पाई अन्यथा जंगलराज में जो अराजकता व भ्रष्टाचार है उसमें पुलिस, मीडिया, जूडिशिरी तक बिकाउ हो गई और सत्ता के साथ गलबहियां किए हुए है. पीड़ित पत्रकार के पक्ष में, हमलावरों और दोषी पुलिस अफसरों के खिलाफ कोई पत्रकार संगठन आवाज नहीं उठाएगा, मुख्यमंत्री को ज्ञापन नहीं देगा, धरना-प्रदर्शन नहीं करेगा क्योंकि पीड़ित पत्रकार बलिया के एक कस्बे से रिपोर्टिंग करता है, वह बड़ा पत्रकार नहीं है, वह बस जमीनी पत्रकार है. लखनऊ के दलाल पत्रकारों के पास फुरसत नहीं कि वो मुख्यमंत्री की जय-जय करने से वक्त निकाल सकें और सत्ता द्वारा प्रदत्त लाभों (य़था मकान, विज्ञापन, मान्यता, आदि) से मुंह मोड़ सकें. ऐसे दल्लू पत्रकार केवल अपना हित और अपने पापी पेट को देखते हैं, किसी दूसरे पत्रकार का दुख-दर्द नहीं. बलिया में पत्रकार के साथ जो हुआ और सिस्टम का उसके साथ जो सलूक रहा उसे देखकर तो यही कहने का मन करता है... बेशरम अखिलेश यादव मुर्दाबाद... यूपी का शासन-प्रशासन मुर्दाबाद, लखनऊ के दलाल पत्रकार मुर्दाबाद... कुछ साथियों को टैग कर रहा हूं ताकि अपने मंच/माध्यम से इस मसले को प्रमुखता से उठाएं और पीड़ित पत्रकार को न्याय दिलाएं.. Amitabh Agnihotri Siddharth Kalhans Umesh Kumar Sanjay Sharma
(यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से साभार)

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