Tuesday 7 October 2014

हम भी मार्क्सवादी और तुम भी / जयप्रकाश त्रिपाठी

                                                                                     हंसते हंसते फांसी पर चढ़े थे वे शहीद
और हम सब हंस हंसकर गुलाम होते हुए,
खुशी-खुशी बिकने को तैयार अपने लिए,
अपने-अपने बाल-बच्चों के लिए
हूं हूं हूं...हम भी मार्क्सवादी जेएनयू वाले
बीस-बीस घंटे तक जीविका की गुलामी
हूं हूं हूं...
हम भी मार्क्सवादी कलकत्ता वाले
दलाल के दलाल के दलालों के चाकर
हूं हूं हूं...हम भी मार्क्सवादी रूस-चीन वाले
मुंह पर मुक्ति की बातें, बाकी सुविधाओं की सुंघनी से बेहोश
उंह् ...हम भी मार्क्सवादी लिखने-पढ़ने वाले
ओफ्फोह् .... धिह्

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