Sunday 16 November 2014

सुखियारे-दुखियारे भइया

दुखीराम को झिड़कते हुए सुखीराम बोले : 'भइया दुखियारे, घर की, परिवार की, पास की, पड़ोस की, प्रदेश की, देश की या पूरी दुनिया के कोने-कोने की, जैसी चाहो, जो भी बात कर लो, अगर गरीबी-सरीबी की बात करना हो तो आइंदा मेरे पास फटकना मत...... मोहनभोग में कंकड़ की तरह चले आते हैं मुफलिसी पर लेक्चर झाड़ने... झाड़ू लगा के देश इतना तेज तरक्की कर रहा है, इन्हे कुछ सुझाई ही नहीं देता....
'तुझसे तो चक्रधारी बाबू भले, मसनदी झरोखे से देख, कितना खाटी-खाटी खुरचते हैं गरीबी को, ले पढ़ दुखीराम, तू भी, मुझे मितली आती है, ऐसी बातों से -
गरीबी है- सो तो है, भुखमरी है – सो तो है,
होतीलाल की हालत खस्ता है – सो तो खस्ता है,
उनके पास कोई रस्ता नहीं है – सो तो है...'

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