Sunday 9 March 2014

छींक / चंद्रभूषण त्रिवेदी रमई काका

चंद्रभूषण त्रिवेदी रमई काका की 'हास्य के छींटे' संकलन में 'दो छींकें' शीर्षक से प्रकाशित ये लोकप्रिय व्यंग्य पंक्तियां उनके ज्येष्ठ पुत्र डॉ. अरुण त्रिवेदी से फोन पर प्राप्त कर प्रस्तुत की जा रही हैं...जो आज की तिथिति में ऑनलाइन कहीं उपलब्ध नहीं हैं।


छींक मुझको भी आती है, 
छींक उनको भी आती है,
हमारी, उनकी छींक में अंतर है
हमारी छींक साधारण है, 
उनकी छींक में जादू मंतर है,
हमारी छींक छोटी नाक की है,
उनकी छीक बड़ी धाक की है,
हमारी छींक हवा में खप जाती है,
उनकी छींक अखबार में छप जाती है।