Sunday 19 October 2014

....और सारू को मिल गई मां

पांच साल का एक भारतीय लड़का 25 साल पहले अपनी मां से बिछड़ गया था। लेकिन उपग्रह से ली गई तस्वीरों के जरिए उसने अपनी मां को खोज लिया। तस्मानिया राज्य में रह रहे सारू की उम्र तब केवल पांच साल थी, जब वो भारत में खो गया था। ट्रेन में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करने वाले बड़े भाई के साथ सफर करने के दौरान ये हादसा हुआ था। सारू बताता है, ‘वो रात का वक्त था। हम ट्रेन से उतरे ही थे और मैं बहुत थका हुआ था। मैं स्टेशन पर एक जगह बैठ गया और मुझे नींद आ गई।’ दुर्भाग्य की उस झपकी ने सारू की आगे की जिंदगी का रुख तय कर दिया। वह कहता है, ‘जब मैं सोकर उठा तो मेरा भाई कहीं नहीं दिखा। मेरे सामने एक ट्रेन खड़ी थी और मैंने सोचा कि वह इसी ट्रेन में होगा। मैं उसकी खोज में ट्रेन में चढ़ गया।’
लेकिन इस सफर ने मुझे एक अनाथालय पहुंचा दिया जहां से मुझे तस्मानिया के एक दंपति ने गोद ले लिया। नए घर में सारू सहज हो गया लेकिन जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया, अपने असली परिवार से मिलने की उसकी ख्वाहिश जोर पकड़ने लगी। लेकिन दिक्कत यह थी कि पांच साल की उम्र में निरक्षर रहे सारू को अपने शहर का नाम तक याद नहीं था। फिर भी उसने‘गूगल अर्थ’ पर घर की तलाश शुरू कर दी। ‘गूगल अर्थ’ के बारे में सारू कहता है, ‘मुझे सुपरमैन की तरह लग रहा था। मैं जहां चाहे वहां जा सकता था। हर तस्वीर के बारे में खुद से पूछता कि क्या ये वही है और जैसे ही यह जवाब मिलता कि नहीं, तलाश आगे बढ़ जाती।’ ‘गूगल अर्थ’ में घर खोजने के लिए सारू ने एक प्रभावशाली तरकीब खोजी, ‘मैंने अंदाजा लगाया कि मेरा सफर कोई 14 घंटे का रहा होगा और इस दरमियान मैंने 1200 किलोमीटर का सफर तय किया होगा।’ उसने कोलकाता शहर को सेंटर में रखते हुए एक सर्किल खींचा और जल्द ही उसे एहसास हुआ कि वह खंडवा शहर की तलाश कर रहा है। वह बताता है, ‘जब मुझे ये मिल गया तो मैंने उस झरने के आस-पास की तमाम जगहों को खंगाला, जहां मैं खेला करता था।’ सारू जल्द ही खंडवा पहुंचा, वो शहर जिसे उसने ऑनलाइन खोजा था। बचपन की गलियों से उसे इस शहर का रास्ता मिला था, और आखिरकार उसे अपना घर मिल गया लेकिन वहां ताला लटका हुआ था। उसके पास अपने बचपन की एक तस्वीर थी और घरवालों के नाम याद थे। पूछने पर पड़ोसियों ने बताया कि वे लोग कहीं और चले गए हैं। तभी एक आदमी ने मां से उसकी बात कराई। सारू की कहानी में प्रकाशकों और फिल्मकारों की दिलचस्पी बढ़ी है। वह कहता है, ‘मुझे यकीन नहीं हो रहा था।’
लेकिन मिलने पर उसकी मां उन्हें ठीक से पहचान नहीं पाई। सारू कहता है, ‘आखिरी बार जब मैंने उन्हें देखा था तो वह 34 साल की थीं। लेकिन चेहरे की बनावट वैसी ही थी। मैंने उन्हें पहचान लिया और कहां, हां, तुम मेरी मां हो। सारू का वो भाई जो रेल के सफर में उनके साथ था, उसकी लाश रेल की पटिरयों पर पाई गई थी। सारू को इसका मलाल है। लेकिन मां से मिलने के बाद उसे अब अच्छी नींद आती है। (राष्ट्रीय सहारा से साभार)