Thursday 29 January 2015

मेरे नये काव्य संकलन की कुछ पंक्तियां

चाहे पथ पर फूल बिछा दे
चाहे कोई साज सजा दे
चाहे कोई लाज लजा दे
चाहे कोई सुबह जगा दे
चाहे कोई शाम सुला दे
मैं अपने मन का बंजारा.......

विष घोले या मिसरी घोले,
चिथड़ा या चांदी से तोले,
बोले अथवा कभी न बोले,
चाहे जो दे, चाहे जो ले,
खोले, मन का भेद न खोले,
साथ-साथ हो ले, न हो ले,
मैं अपने मन का बंजारा.......

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