Tuesday 24 February 2015

अन्ना के हर आंदोलन में 'वो' गहरा राज क्यों?

भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ समाजसेवी अन्ना हजारे का जंतर मंतर पर अनशन तल्ख तेवर दिखा रहा है। मोदी सरकार के किसान विरोधी कदम से नाराज अन्ना हजारे भूमि अधिग्रहण कानून में किए गए बदलावों से नाखुश हैं।
क्या एक सरकारी अधिकारी की उस टिप्पणी में सचमुच कोई हकीकत छिपी है कि अन्ना किन्ही अंतरराष्ट्रीय ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं? अन्ना के हर आंदोलन में एक गहरा राज छिपा रहता है। एक सवाल सीधे उनसे बनता है कि क्या वो उन भूमिहीन किसानों और उन मजदूरों के लिए भी वह कोई आंदोलन छेड़ना चाहेंगे, जो 'देसी और विश्व-पूंजी' की साझा सहमतियों से दमन की चक्की में बेरोक-टोक पीसे जा रहे हैं? क्या वो कोई ऐसा आंदोलन भी छेड़ना चाहेंगे, जो सारी बीमारियों की जड़ आर्थिक विषमता के खिलाफ हो...शायद कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं, ...क्योंकि ...????? चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत भी सिर्फ धनी किसानों की लड़ाइयां लड़ते रहे हैं। गरीब और भूमिहीन किसान-मजदूरों के लिए उनके सीने में कभी दर्द नहीं उठा। अन्ना भी आज उसी राह पर हैं। वह जन लोकपाल विधेयक, भूमि अधिग्रहण कानून की तो बात करते हैं लेकिन पूंजीवादी-साम्राज्यवादी ताकतों की असली कारस्तानियों पर मौन साधे रहते हैं। यही हकीकत उनके पुराने शागिर्द एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भी है।
अन्ना का कहना है कि भूमि अधिग्रहण बिल में बदलावों से किसानों से सरकार उनका हक छीन रही है। अन्ना ने बदलावों को उद्योगपतियों के लिए फायदेमंद बताया है। अन्ना ने कहा है कि अगर किसानों को न्याय नहीं मिला तो चार महीने बाद वो रामलीला मैदान से जेल भरो आंदोलन शुरू करेंगे। सरकार ने नारा दिया था कि अच्छे दिन आने वाले हैं, तो वो अच्छे दिन कब आएंगे। क्या ये अच्छे दिन सिर्फ बड़े बिल्डर्स के लिए आने वाले हैं। अध्यादेश उद्योगपतियों के लिए है। इतना अन्याय तो अंग्रेजों ने भी नहीं किया।
अन्ना की मांग है कि सरकार इस अध्यादेश को वापस ले। वास्तविक रुप में ऐसे अध्यादेश को जारी करने की कोई जरुरत नहीं थी। फिर भी सरकार ने अध्यादेश लाते हुए किसानों की सहमति बिना भूमि अधिग्रहण करने का निर्णय लिया है। 70 प्रतिशत किसानों की सहमति को निकाला गया है। यह सबसे बडा धोखा है क्योंकि, इससे ग्रामसभा के अधिकार को बाधित किया गया है।
नरेंद्र मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण क़ानून में बदलाव का विरोध इस समय पूरे देश की जुबान पर है। सरकार बगले झांक रही है और बंदरघुड़कियां भी कि वह अन्ना की बात नहीं मानेगी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में भूमि अधिग्रहण क़ानून में बदलाव को मंज़ूरी दी गई थी। वर्ष 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था। मनमोहन सरकार ने मोटे तौर पर उसके तीन प्रावधानों में बदलाव कर दिए थे। ये भूमि अधिग्रहण की सूरत में समाज पर इसके असर, लोगों की सहमति और मुआवज़े से संबंधित थे। ये जबरन ज़मीन लिए जाने की स्थिति को रोकने में मददगार था। सोशल इंपैक्ट असेसमेंट की मदद से ये बात सामने आ सकती थी कि किसी क्षेत्र में सरकार के ज़रिये भूमि लिए जाने से समाज पर इसका क्या प्रभाव हो सकता है। ये इसलिए लागू किया गया था कि इससे ये बात सामने आ सकती थी कि इससे लोगों के ज़िंदगी और रहन-सहन पर क्या असर पड़ सकता है क्योंकि कई बार कई ऐसे लोग होते हैं जो ज़मीन के बड़े हिस्से के मालिक होते हैं लेकिन कई ऐसे होते हैं जिनके पास भूमि के छोटे टुकड़े मौजूद होते हैं।
सोशल इंपैक्ट असेसमेंट ये बात सामने ला सकता था कि पूरी अधिग्रहण प्रक्रिया का समाज पर क्या असर पड़ेगा। इसके लिए आम सुनवाई की व्यवस्था पुराने क़ानून में थी। 2013 के क़ानून में एक प्रावधान रखा गया था लोगों सहमति का। सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में प्रभावित ज़मीन मालिकों में से 80 फ़ीसद की सहमती ज़रूरी थी। पूरे तौर पर सरकारी परियोजनाओं के लिए ये 70 प्रतिशत था। नए क़ानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है। वित्त मंत्री अरूण जेटली के मुताबिक रक्षा, ग्रामीण बिजली, ग़रीबों के लिए घर और औद्योगिक कॉरीडोर जैसी परियोजनाओं में 80 फ़ीसद लोगों के सहमिति की आवश्यकता नहीं होगी। संशोधन में मुआवज़े की दर को पहले जैसा ही रखा गया है।
एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है - ''बीजेपी सरकार को लगता है कि अन्ना हजारे ऐसी अंतरराष्ट्रीय ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं जो भारत को अविकसित रखना चाहते हैं। एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अन्ना के साथ मेधा पाटेकर जैसे लोगों का होना दिखाता है कि अन्ना ऐसी ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं जो भारत को अविकसित रखना चाहती हैं। मेधा पाटेकर ने नर्मदा बांध का भी विरोध किया था। सरकार में मौजूद सूत्र ने कहा कि ये लोग पर्यावरण के नाम पर विभिन्न योजनाओं की राह में रोड़ा अटकाना चाहते हैं। एक बीजेपी नेता ने कहा कि अन्ना आज जिस जगह बैठे धरना दे रहे हैं, वह भी कभी किसी किसान की रही होगी। इस नेता ने पूछा, 'क्या अन्ना इन सवालों के जवाब देंगे कि क्या किसानों को स्कूल और अस्पताल नहीं चाहिए? क्या उसकी फसल को बाजार तक पहुंचाना नहीं है और क्या ऐसा बिना जमीन लिए किया जा सकता है? क्या सरकार सड़कें बनाने के लिए जमीन बना सकती है?' सरकार का कहना है कि लैंड बिल के बारे में कई तरह के भ्रम फैलाए जा रहे हैं, मसलन मुआवजे का प्रावधान एनडीए सरकार ने छेड़ा भी नहीं है, यह वही है जो पिछली सरकार के बनाए कानून में था। बीजेपी का आरोप है कि 2013 का कानून यूपीए ने किसानों के फायदे के लिए नहीं बल्कि वोट पाने के लिए बनाया था, इसीलिए कांग्रेस सरकारों ने भी उसके खिलाफ आवाज उठाई थी। महाराष्ट्र सरकार ने 2013 के कानून पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था।'' 

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