Sunday 1 February 2015

मेरी पाठशाला पांच : जिनको, अक्सर पढ़ता रहता हूं

हिंदी अकादमी, दिल्ली और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से सम्मानित, स्वभाव से अत्यंत सहज रूपसिंह चंदेल मेरे जनपद के गांव नौगवाँ से हैं। दिल्ली में मुद्दत पार कर गये। फेसबुक पर भी सक्रिय रहते हैं। rachanasamay.blogspot.in (रचना समय) उनका सुपठनीय हींदी ब्लॉग-संग्रहालय है। अनवरत लेखन-पठन-पाठन में व्यस्त रहते हैं। कहानी, उपन्यास, आलोचना, यात्रा वृत्तांत, संस्मरण, जीवनी, बाल साहित्य उनकी प्रमुख रचना-विधाएं हैं।
उनकी औपन्यासिक कृतिया हैं - पाथरटीला, रमला बहू, नटसार, शहर गवाह, गुलाम बादशाह, रुकेगा नहीं सवेरा, खुदीराम बोस। कहानी संग्रह हैं- पेरिस की दो कब्रें, अजगर तथा अन्य कहानियाँ, आदमखोर तथा अन्य कहानियाँ, हारा हुआ आदमी, चौपालें चुप हैं, एक मसीहा की मौत, आखिरी खत, इक्कीस कहानियाँ, जीनियस, तेरह कहानियाँ, साठ कहानियाँ, भीड़ में, बिठूर के क्रांतिकारी। क्रांतिकारी, खंडित स्वप्न, खतरा, दरिंदे, बैल, वह चुप हैं, वह चेहरा, सड़क की ओर खुलता मकान, सब बकवास, हादसा आदि उनकी चर्चित कहानियाँ हैं।
बाल साहित्य में उन्होंने ऐसे थे शिवाजी, अमर बलिदान, क्रांतिदूत अजीमुल्ला खां, राजा नहीं बनूँगा, होनहार बालक, नन्हा वीर, क्रांतिदूत, जादुई छड़ी, चतुर रबीला, अपना घर, एक था गोलू, देश-विदेश की कहानियाँ, राजा का न्याय आदि की रचना की है।  साहित्य, संवाद और संस्मरण उनका आलोचनात्मक ग्रंथ है। इसके अलावा दक्षिण भारत के पर्यटन स्थल, यादों की लकीरें, दोस्तोएव्स्की के प्रेम, अपराध : समस्या और समाधान आदि उनकी अन्य कृतियां हैं। उन्होंने हाजी मुराद  (उपन्यास : लियो तोलस्तोय), लियो तोलस्तोय का अंतरंग संसार (लियो तोलस्तोय पर उनके रिश्तेदारों, मित्रों, लेखकों, रंगकर्मियों आदि के 30 संस्मरण) आदि का अनुवाद भी किया है।

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