Sunday 29 March 2015

मजीठिया की सिफारिशें और मीडिया मालिकों के घृणा का पाठ-1

ऐसे में एक सवाल पीछा करता है कि क्या मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने की लड़ाई वर्ग संर्घष की लड़ाई नहीं हैं? फिर लगता है कि शोषण करने वाले सभी प्रकार के मानवद्रोहियों का वर्ग एक है। वे सब अलग-अलग मोरचों पर, अलग-अलग तरीके से शिकार कर रहे हैं। और इसीलिए साम्यवादी विचारधारा के प्रति घृणा का पाठ पढ़ाते रहते हैं। इसीलिए मैं लगातार अपने अभियान पर अटल हूं कि 'मीडिया हूं मैं', सिर्फ किताब नहीं, एक बड़े अभियान का हिस्सा है, उन मानवद्रोहियों के खिलाफ, जो मीडिया साम्राज्य स्थापित कर बेरोजगारी और अशिक्षा का फायदा उठाते हुए उन श्रमजीवी पत्रकारों को निरक्षर मेहनतकशों की तरह बस दिहाड़ी पर इस्तेमाल करते रहना चाहते हैं। जबकि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें भी कोई उतनी न्यायसंगत नहीं, जो मीडिया मालिकानों के अकूत मुनाफे का प्रभाव रोक सकें। वह तो पत्रकारों के जीवन यापन भर की सिफारिशें हैं, मीडिया मालिकानों को उतनी मामूली सिफारिशें भी कुबूल नहीं। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अखबारों और न्जूज चैनलों के भीतर की क्रूरता की पराकाष्ठा क्या है।
इसीलिए पुस्तक 'मीडिया हूं मैं' अपने कवर पेज से ही इस तरह के वाक्यों को पढ़ने का आग्रह करती है - कुछ तो होगा, कुछ तो होगा, अगर मैं बोलूंगा, न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का, मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा (रघुवीर सहाय)। समाचारपत्र पैसे कमाने, झूठ को सच, सच को झूठ करने के काम में उतने ही लगे हुए, जितने कि संसार के बहुत से चरित्रशून्‍य व्‍यक्ति (गणेश शंकर विद्यार्थी)। पत्रकार बनना चाहते हो! कीमत एक बार लगेगी, नहीं लगने दी तो कीमत लगातार बढ़ती जायेगी। लगा दी तो दूसरे दिन से कीमत शून्य हो जायेगी (माखनलाल चतुर्वेदी)। एक समय आएगाए जब संपादकों को ऊंची तनख्वाहें मिलेंगीए किन्तु उनकी आत्मा मर जाएगीए मालिक का नौकर हो जायेगा (बाबूराव विष्णु पराड़कर)। मीडिया मालिकों का दृष्टिकोण मुनाफाखोर हो गया है, बाजारू हो गया है ये। नैतिकता दिखाने वाले संपादकों को मालिक कान पकड़कर बाहर कर देते हैं (जवरीमल्ल पारख)। पत्रकारिता का व्यवसाय, जो ऊंचा समझा जाता थाए गंदा हो गया है (भगत सिंह)। पत्रकार को जिंदा रहने के लिए लिखना है, धन के लिए नहीं। वह प्रेस, जिसका व्यापार के लिए संचालन होता है, जिसका नैतिक पतन हो चुका है, क्या वह स्वतंत्र है (कार्ल मार्क्स)! समाचार पत्र सर्च लाइट के झोंके की तरह कभी एकए कभी दूसरे को हर अंधकार से घसीट लाता है (लिप मैन)। मीडिया ने लोभ-लालच में विश्वसनीयता को खत्म कर डाला है (मैकलुहान)।

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