Sunday 29 March 2015

मजीठिया की सिफारिशें और मीडिया मालिकों के घृणा का पाठ-4

ऐसे में 'मीडिया हूं मैं' के अंतिम पृष्ठ की ये टिप्पणी भी एक जरूरी आग्रह के प्रति हमे आगाह करती है कि '' मैं सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं। लड़ने के लिए भी। मनुष्यता जिनका पक्ष है, उनके लिए। जो हाशिये पर हैं, उनका पक्ष हूं मैं। उजले दांत की हंसी नहीं। 'मीडिया हूं मैं'। सूचनाओं की तिजारत और जन के सपनों की लूट के विरुद्ध। जन के मन में जिंदा रहने के लिए पढ़ना मुझे बार-बार। मेरे साथ आते हुए अपनी कलम, अपने सपनों के साथ। अपने समय से जिरह करती बात बोलेगी। भेद खोलेगी बात ही। एक-जनता का दुःख एक। जैसे पाब्लो चाहता था- आ जाओ मेरी सिराओं और मेरे मुख में। बोलो मेरे शब्दों और मेरे लहू में। नाजिम ने रोका था कभी कि 'भले ही उस घर में घुस जाओ, जहां प्लेग हो लेकिन उस घर की देहरी भी मत लांघना, जहां दलाल रहता हो।'
'कितना समय बीता होगा मुझे लिखे जाने में। और अभी कितना वक्त गुजर जाना है पढ़ते-पढ़ते मुझे। इस भरोसे के साथ कि इसी तरह होती है हर अच्छी शुरुआत। पढ़ना और रचना स्वयं को। मुझे बांचते हुए विश्वास देना अपना और बताना कि जन-गण का सच कह कर गलत क्या किया है मैंने। पूछना कि इतने चुप क्यों हैं हमारे समय के लेखक, कलाकार, चित्रकार। क्या है उनका पक्ष-विपक्ष। जैसे ब्रेष्ट ने पूछा था- कैसा है ये वक्त कि पेड़ों पर बातें करना लगभग जुर्म है, क्योंकि उसमें कितनी दरिंदगियों पर खामोशी शामिल है। याद रहने देना गोएठ के शब्द कि लक्ष्य जितना निकट आता है, कठिनाइयां बढ़ती जाती हैं। सहेजना मुझमें संकलित मीडिया मनस्वियों के शब्द। चुन-चुन कर रची गई हूं मैं। न थकते हुए, न जीतते, न हारते हुए। पाश ने कहा था- उनकी पुस्तक मर चुकी है, न पढ़ना उसे। उनके शब्दों में मौत की ठंडक है और एक-एक पृष्ठ जिंदगी के आखिरी पल जैसा भयानक।' पीट रहे हैं वे हमे लकीरों की तरह। विचारों की वेश्यावृत्ति में डूबे पेज-थ्री के लंपट। सूचनाओं के जनविश्वास और उत्पीड़ितों की गहरी उदासी से खेलते हुए। न कविता हूं मैं, न गीता के श्लोक। जयघोष हूं अपने श्रमजीवी अतीत का। अपने अस्सी प्रतिशत जन-गण-मन का। भगत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी, बारींद्रनाथ घोष की मशालों की चिंगारी हूं मैं। एक और आजादी के आंदोलन की ओर। बिल्कुल निहत्था। हाथ बिना ऊपर उठाए। उनकी तरफ से, जो सबसे कमजोर हैं। 'सब उठो, मैं भी उठूं, तुम भी उठो, तुम भी उठो... कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी।'

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