Thursday 5 March 2015

जीवन जीने की कला / जयप्रकाश त्रिपाठी

महानता का उच्च आत्मालाप,
जहँ-तहँ अवसरवादी श्रद्धाभिभूति,
नामवर 'बड़ों' की चाटुकारिता
और अ-पठित, अ-घोर, अ-मनुष्यता 
है उसके जीवन जीने की कला ।

No comments:

Post a Comment