Friday 27 March 2015

चैनल चूँ चूँ का मुरब्बा / जसबीर चावला

बेहद परेशान थे टीवी चैनल ‘सीसीकेएम’ ( पूरा मतलब चूँ चूँ का मुरब्बा ) के सीईओ इन दिनों. सबब था उनके चैनल की कमाई का गिरता ग्राफ़. दूसरे चैनल खूब चाँदी काट रहे थे, उनके चैनल की टीआरपी भारत सरकार की साख की तरह घट रही थी.
उन्होंने आनन-फ़ानन में अपने सारे एंकर से लेकर फ़ील्ड संवाददाता, प्रोड्यूसर, केमरामैन सबकी आपात् बैठक बुलाई. सबको देश में – तेज़ी से लेकर सुस्त चलने वाले दस मिनट में दो सौ ख़बरें परोसने वाले, चैन की नींद सोने वालों को जगाने वाले कई चैनलों के कामयाब नुस्खे वाले कार्यक्रम दिखाये, विशेषज्ञों के भाषण करवाये. उन्होंने कुछ टीवी क्लिपिंग दिखलाई, जिनसे उन चैनलों के दिन फिर गये थे. उनमें कुछ के नमूने ये थे. “मिल गया, मिल गया, रावण का महल मिल गया. वह एअरपोर्ट भी मिल गया जहाँ उसका विमान लेडिंग करता था”- पार्श्व में रामायण सीरियल की धुन बजने लगी. “आज रात बाज बकरी को आठ बजे उठा ले जायेगा, देखना न भूलें, आपके अपने टीवी ‘इंडिभार’ पर” . अगला चैनल-”अंतरिक्ष से उड़न तश्तरियाँ आ कर गायों को ले जा रही हैं, हमारे जाँबाज पायलटों ने हेलिकॉप्टर से पीछा किया पर वे चकमा देकर भाग गईं”- अगला समाचार “आकाश से एलियन आ चुके हैं, कहीं आपकी खिड़की से झाँक तो नहीं रहे, उठ कर देख लीजिए”
पार्श्व में खौफनाक संगीत बजता है.
अगले चैनल पर- “मिल गया भगवान श्रीकृष्ण का शंख”- नेपथ्य में शंख ध्वनि. “मिल गई सीता की रसोई जहाँ वे भोजन बनाती थीं. “पार्श्व में रामायण की चौपाईयां.
तरह तरह के हिट कार्यक्रम.
ख़बरें और भी थीं- बनारस में बरगद का पेड़ जिसमें तीन पत्ते लगते हैं- ब्रम्हा विष्णु महेश. जनता पूजा कर रही है. अगला समाचार में -”दार्जीलिंग के कुर्सीयांग में एक उड़न तश्तरी जमीन पर गिरी”. जमीन पर एक दो फ़ुट लोहे की डिस्क जो किसी मशीन का पुर्ज़ा था – पड़ी थी. वाचक संवाददाता उसे ही उड़न तश्तरी मान कर चर्चा करने लगे- “लोग डरे तो नहीं, पूजा शुरू हुई कि नहीं”- वाचक चाहता था कि लोग पूजा शुरू करें तो कहानी लंबी खिंचे.
“सांई बोलने लगे-आँखें झपकने लगी”. दो चैनलों नें इस एनिमेशन फ़िल्म ओर उसके परम रहस्य को कई दिनों तक दर्शंको को समझाया. “बंदर जो केवल गोरी लड़कियों का दीवाना है”. “आज सिर्फ़ देखिये हमारे चैनल पर. बाबा सूर्यदेव की घोषणा- २०१४ में धरती पर प्रलय”
नेपथ्य में भूकंप की गढ़गढ़ाती आवाज़ें, हाहाकार, समुद्र का गर्जन, भक्त जनों का कीर्तन.
चैनल सीसीकेएम उर्फ़ चूँ चूँ का मुरब्बा के सीईओ ने उन्हें बाबा घासाराम, चरायण सांई, भूत प्रेत, सेक्स, अपराध, अघोरी, तंत्र-मंत्र, धर्म-अध्यात्म के फ़िल्मी काकटेल, आश्रमों हो रही रास लीलाएँ, अंधिवश्वास के खेल तमाशे, कच्चे अधपके चुनावी स्टिंग आप्रेशन और इनसे चैनलों को बढ़ती टीआरपी और कमाई, सब की आडियो विडियो दिखलाई.
ख़बरें कैसे बनाई जाती हैं, यह भी उदाहरणों के साथ समझाया. एक खबर की किल्पिंग में श्रीनगर के लालचौक में अलगाववादी तिरंगा खरीदते और जला देते. अब उनसे कौन पूछे कि भइयै, वहाँ कोई झंडे की दुकान भी है क्या? यह सब अंग्रेज़ी के एक अख़बार की नक़ली प्रायोजित फ़ोटो थी. “आँखो-देखी” की बिहार में नक़ाबपोश हथियारबंद दादाओं द्वारा बूथ केपचरिंग की स्टोरी गढ़ी हुई थी. बनारस में तीन वर्ष पूर्व पन्द्रह विकलागों की गुमटियां सड़क अतिक्रमण में हटना थी. उन्हें चैनलों ने उकसाया कि वे ज़हर खा लें हम कैमरे से शूट करेंगे, और तुम्हें बचा लेंगे. सबने टीवी पर इसे देखा. उन्होंने सचमुच ज़हर खा लिया. पांच की जान चली गई पर चैनलों की टीआरपी आसमान छूने लगी.
सीईओ ने चेलेंज किया जो कोई धाँसू स्टोरी – चाहे गढ़कर लाये, चाहे स्टिंग कर के, उसे पचास लाख रुपये नक़द और थाईलैंड की सैर पर भेजा जायेगा. सारे रिपोर्टर दौड़ पड़े -’इस्टोरी’ की तलाश में. जिस झारखंडी रिपोर्टर की स्टोरी चुनकर टेलिकास्ट हुई वह कुछ ऐसी थी.
“मिल गया, धोनी के चौकों छक्कों का राज. आज रात प्राइम टाईम में ८ बजे चैनल सीसीकेएम पर. कौन है जो उसे ऊर्जा से भर देती है, कौन है वह सलोनी श्यामा. जिसका राज धोनी भी नहीं जानता, हम उठायेंगे पर्दा इस रहस्य से जिसे हमारे संवाददाता कूड़ाप्रसाद नें जान पर खेल कर उठाया है”.
क्रिकेट इस देश का सन्निपात बुखार है और कभी उतरता ही नहीं. सारा देश सदा तपता रहता है. प्रलाप करता रहता है. देश में इस खबर से हलचल मच गई. देश थम गया, चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो उठा, कौन है वह सुंदरी..
परम जिज्ञासा से सब ‘चू चूँ का मुरब्बा’ देख रहे थे.
“जी हाँ धोनी के चौके छक्के के पीछे जिस व्यक्ति का हाथ है वह हैं मुक्तिकुमार, जिनकी भैंसों का दूध धोनी पीते हैं”- कैमरा मुक्तिकुमार पर फ़ोकस होता है. “ये भैंसें पालते हैं, दूध निकालते हैं,- दूध जो अमृत होता है जिसकी देश में नदियाँ बहती थी”- मुक्तिकुमार जी गदगद् हैं. पीछे उनकी घरवाली लजाती सकुचाती नज़र आती है जिस पर कैमरा अब फ़ोकस है, जो भैंस का दूध निकाल रही है. कैमरा कभी मैदान में चरती भैंसों पर जाता है कभी मैदान में क्रिकेट खेलते चौके छक्के लगाते धोनी पर कभी दूध निकालती मिसेज़ मुक्तिकुमार पर कभी गिलास से दूध पीते ओर मलाई पोंछते धोनी पर. बड़ा ही मनोहारी दृश्य बनता है. दूध निकालती घरवाली, बाल्टी में झागदार दूध, भैंस, मैदान और धोनी के चौके छक्के……….! तभी मुक्तिकुमार बतलाते हैं कि धोनी की फ़ेवरेट भैंस कोई और ही है….!
रहस्य…रोमांच…! रहस्य भरा संगीत….।
स्टूडियो से वाचक घोषणा करता है- जाइयेगा नहीं हम मिलेंगे ब्रेक के बाद, और दिखायेंगे उस भैंस और तबेले को जिसे मुक्तिकुमार से इजाज़त न मिलने पर भी ‘जान पर खेल कर’ ढूंढ निकाला है, हमारे संवाददाता के. प्रसाद ने. सारा देश टकटकी लगाये टीवी से चिपका रहा- परम रहस्य से पर्दा जो उठना था.
ब्रेक के बाद कैमरा घोसीपुरा में मुक्तिकुमार के तबेले में घूम रहा है. संवाददाता के कपड़े गोबर-गंदगी से भरे पड़े हैं. कैमरा चारा, रस्सियां, गोबर, मरियल से बिजली के लट्टू, टोके, गंडासे से होता हुआ भैंसों की क़तार दिखाता हुआ एक ख़ास श्यामा सलोनी ‘भैंस’ पर टिक जाता है. संवाददाता उवाच- “यही है वह वह अनमोल प्यारी भैंस जिसका दूध पीकर धोनी रनों की बरसात कर देता है” पार्श्व में गाना बजता है- “तारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया”. अब कैमरा भैंस की आँखों पर जाता है, रुकता है- गाने की आवाज़- “झील सी इन आँखों में डूब डूब जाता हूँ”. अब केमरा भैंस के सींगों के क्लोज़ से उसकी पूँछ तक मिड शॅाट से लाँग शॅाट में जाता है. वाचक पूछता है -”इसकी उम्र क्या है”-संवाददाता-”"बाली उम्र है”-शरारत से-”महिलाओं की उम्र नहीं पूछते”. संवाददाता भैंस के नज़दीक़ हो गया- क्लोजप शॉट- भैंस ने उसका गाल चाट लिया- संवाददाता लजाता है. भैंस रंभाती है, सारा देश इस अद्भुत कौतुक को देख तालियाँ बजाता है.
चैनल सीसीकेएम पर यह स्टोरी टुकड़ा-टुकड़ा कई दिनों तक सारा सारा दिन चली टीआरपी उछल कर सातवें आसमान पर चढ़ गई. खूब विज्ञापन मिले. चैनल निहाल हो गया. रिपोर्टर को १० लाख रुपये और बैंकाक में सुंदरियों से मसाज का अवसर मिला – उसके पहले बोनस में गोआ ट्रिप अलग से.
मिलते हैं ब्रेक के बाद और बतलायेंगे कि कौन हैं अस्ट्रेलिया में वर्ल्ड कप में हार के मुजरिम
जैसे “चूँ चूँ का मुरब्बा” तथा रिपोर्टर के दिन फिरे सब चैनलों के दिन फिरें.


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