Monday 6 April 2015

सार्त्र पर डॉ. विजयमोहन सिंह का कार्य अद्भुत था, उनका चला जाना अपूरणीय क्षति

रूप सिंह चंदेल लिखते हैं, डॉ. विजयमोहन सिंह का चला जाना हिन्दी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है. वह न केवल एक सशक्त कथाकार थे बल्कि उतने ही समर्थ आलोचक भी थे.
 सार्त्र पर उनका कार्य अद्भुत है.
सादतपुर (दिल्ली) में वरिष्ठ कवि,कथाकार,जीवनीकार और आलोचक श्री विष्णुचन्द्र शर्मा के निवास पर सादतपुर के साहित्य समाज द्वारा कल दि. ५.४.१५ को एक शोक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें हरिपाल त्यागी,रामकुमार कृषक,वीरेन्द्र जैन, महेश दर्पण, विजय श्रीवास्तव, हीरालाल नागर, अरविन्द कुमार सिंह, रूपसिंह चन्देल और एक सज्जन जिन्हें मैं नहीं जानता सम्मिलित हुए. विजयमोहन सिंह की एक कहानी का पाठ किया गया. तदुपरांत महेश दर्पण ने उन पर अत्यंत सारगर्भित अपना संस्मराणात्मक आलेख पढ़ा. एक-एक कर सभी ने विजयमोहन जी के व्यक्तित्व और साहित्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए.
विजयमोहन सिंह विष्णु जी के अच्छे मित्र थे.विष्णु जी से उनका परिचय उनके छात्र जीवन के समय हुआ था और अंत तक रहा. विष्णु जी ने विस्तार से उनके जीवन पर प्रकाश डाला. इस शोक सभा में जो बात ज्ञात हुई वह यह कि दिल्ली की किसी भी संस्था ने उन पर शोक सभा का आयोजन नहीं किया. यह इस बात को सिद्ध करता है कि हिन्दी साहित्यकार किस प्रकार खेमों में बट गए हैं. विजयमोहन की विशेषता थी कि उन्हें जो सही लगता (संभव है कि दूसरे को वह गलत लगता हो) वह उसे कह देते थे. क्या यह कारण था? अर्थात हिन्दी वालों में अपनी आलोचना सुनने की क्षमता चुक गई है......किसी भी साहित्य के लिए क्या इसे शुभ कहा जा सकता है?

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