Sunday 22 February 2015

विदा वर्डबुक फेयर 2015

विश्व पुस्तक मेले से लौटा आज सुबह, मीडिया पर गंभीर वाद-संवाद, बधाईयों और उलाहनों, मित्रों की ढेर सारी मीठी स्मृतियों के साथ। बड़ी सूनी लग रही है आज की शाम।
वे आठ दिन, किताबों के मेले में साहित्यिक चर्चाओं, गोष्ठियों, उत्साही मित्र यशवंत सिंह की सामूहिक-सार्वजनिक टिप्पणियों, 'लेखक से मिलिए' रोजाना के कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल, कथाकार शिवमूर्ति, संजीव, नासिरा शर्मा, आलोक श्रीवास्तव, पत्रकार रवीश कुमार (‘इश्क़ में शहर होना’), राजकमल के स्टॉल पर जावेद अख्तर, गांधी शांति प्रतिष्ठान के स्व-प्रायोजित कार्यक्रम में पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी, प्रो.निर्मला जैन, आईआईएमसी के प्रोफेसर आनंद प्रधान, डॉ.वर्तिका नंदा, राज्यसभा टीवी के पत्रकार अरविंद कुमार सिंह, मशहूर जर्नलिस्ट मुकेश कुमार, गार्गी कालेज के अत्यंत हंसमुख और जागरूक प्रोफेसर श्रीनिवास त्यागी, नये आत्मीय साथी राजीव शर्मा, जालौन के वरिष्ठ पत्रकार साथी अनिल शर्मा, नेशनल बुक ट्रस्ट की पत्रिका के संपादक पंकज चतुर्वेदी, जनसत्ता-अमरउजाला आदि समाचारपत्रों में अपनी लेखनी का जलवा दिखाते रहे शंभुनाथ शुक्ल, युवा प्रकाशक शैलेश भारतवासी, युवा समीक्षक डॉ.गणेश शंकर श्रीवास्तव आदि की यादों का मेला, आज की शाम बहुत उदास कर रहा है। जैसे मन के मेले में अकेला-अकेला सा..
हर दिन शब्दों के नये नये युग्म जीता रहा, हिंद युग्म और वर्धा यूनिवर्सिटी के स्टॉल हमारे अड्डे बने रहे, कभी अशोक मिश्र, राकेश यादव तो कभी दिविक रमेश, उदभ्रांत, नित्यानंद तिवारी, कंवल भारती, अपनी धर्मपत्नी के साथ मीठे-मीठे मुस्कराते मिले प्रसिद्ध साहित्यकार रामदरश मिश्र। इसी दौरान मेरी कनिष्ठ पुत्री रंजना के संकलन 'कुल्हड़ में वोदका' के विमोचन। कई पुस्तकें खरीद लाया हूं, जिनमें सत्य व्यास का उपन्यास 'भारत टाकीज' सबसे अदभुत। अब अगली फरवरी तक वे दिन बहुरेंगे, तब तक जीवन पता नहीं कितने रंग, कितने रूप धर चुका होगा... वे पंक्तियां दुहराते हुए कि ...आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं..
अपना गुज़रा हुआ कल अभी ज़्यादा पीछे नहीं गया है
फिर उसी सिफ़र से शुरू करते हैं