Thursday 9 April 2015

घुमक्कड़ केदारनाथ पांडेय से राहुल सांकृत्यायन तक / जयप्रकाश त्रिपाठी

आज दिन राहुल सांकृत्यायन को याद करने का रहा। सुबह से अब फुर्सत। तो सोचा अपने ही जिला आजमगढ़ के, और अपने ही बगल के गांव के कनैला के थे बहुभाषाविद् त्रिपिटिकाचार्य तो कुछ ऐसी अपनी भी बता डालूं जो बहुतों को मालूम नहीं। हां, उन सहपाठियों को जरूर याद होंगी, जो उस दिन क्लास में मेरे सहित मौजूद थे। राहुल जी के गांव के ही थे पारसनाथ पांडेय, जो बारहवीं में हमारे क्लास टीचर थे। उनके पास कालेज ही नहीं, अपने पूरे गांव-जवार के बारे में एक-से-एक धांसू, पंचकूलाई, सुघर-सुघरी कहानियां थीं। घुमक्कड़ जिज्ञासु बचपन के नामधारी केदारनाथ पांडेय उर्फ राहुल सांकृत्यायन के बारे में ये सब भी उन्हीं का बताया-कहा है.....
तो गुरुवर पारसनाथ पांडेय ने केदारनाथ पांडेय के एक किशोर-घटनाक्रम को खूब रस ले-लेकर उस दिन हमे क्लास में कह सुनाया था -
....राहुल जी किशोरवय में ही गांव से परा (भाग) लिए थे। बड़ी खोज-ढूंढ मची महीनो। कहीं कोई अता-पता नहीं। वर्षों बाद लौटे तो पिता गोवर्धन पाण्डेय आगबबूला। हमारे बाबू (पारसनाथ के पिता) ने छेंकाछेंकी कर मामला बरजा (शांत कर) दिया। कई दिन तक बाप-बेटे में मुंहफुलौवल (नाराजगी) रही। तब तक केदारनाथ बाहर के मजे-सजे के साथ सब सीख-पढ़ आए थे, गांव में सयाने-सयाने बने डोल रहे थे लेकिन नया वाल नाम 'राहुल सांकृत्यायन' धारण नहीं किया था। ऊ सब बाद में हुआ।
.... एक दिन केदारनाथ का मन गांव से फिर उचटा (जैसे उस दिन क्लास में हम लोगों का उचट रहा था, तब वे बातें फालतू लगती थीं क्योंकि हमे कहां पता था कि हम किस बाणभट्ट की कथा सुन रहे हैं! अब गर्व होता है वे दिन याद कर)। सुबह-सुबह मुंह अंधेरे गोवर्धन चाचा (पारसनाथ चाचा कहते थे राहुल जी के पिता को) और केदारनाथ में जम के मुंहफचरी हुई। गोवर्धन चाचा ने कहा- जरा गांव से बाहर निकल के तो दिखा, टांगें तोड़ के हाथ में न दे दूं तो तेरी की। शादी-बियाह कर के उस दफा परा लिए ससुर, फिर अब कहां जा रहे हो, ऐं! ई जो घर में तोहार माई (केदारनाथ उर्फ राहुल की पत्नी) बइठलि हईं, इनके के खियायी-पहनाई (अर्थात घर में ये जो तुम्हारी मां (पत्नीको) बैठी है, उसको कौन खाना-कपड़ा देगा)। युवा केदारनाथ ने तपाक से छूटते ही पिता गोवर्धन से कहा - माई (मां) है तो पिता ही न खिलाए-पहनाएगा। खियावा-पहनावा माई के, हम तो चले अयोध्या....। बताते हैं, उस दिन के बाद बौद्धनामधारी केदारनाथ पांडेय उर्फ राहुल सांकृत्यायन फिर कभी अपने गांव कनैला (आजमगढ़) नहीं लौटे। हां, बताते हैं, श्रीलंका-प्रवास के दिनो में आजमगढ़ जरूर लौटे थे बूढ़े बरगद के नीचे पुरातात्विक खुदाई कराने के लिए।