Wednesday 28 December 2016

भारत के राष्ट्रपति के नाम 4400वां पत्र

तेम्हुआ, 20-12-2016
 सेवा में,
आदरणीय महामहिम भारतीय राष्ट्रपति जी, चरणस्पर्श।
हम सही नहीं हैं मगर आपकी सलामती की कामना
करते हैं। हे राष्ट्रपति जी, पिछले बारह [12] वर्षों से हर रोज आपके
नाम हम पत्र लिख रहे हैं और यह हमारा 4400 वां पत्र है। हर पत्र में
मैंने लिखा है कि-"प्लीज हमें आपसे मिलने के लिए थोड़ा -सा वक़्त दिया जाय
तथा हमारे गांव के उन ग़रीबों को उनका वाज़िब हक़ दिया जाय जिनके परिवार के लोग
बिमारी के कारण असमय मर चुके हैं।" मगर आज तक आपने हमें मिलने का वक़्त
नहीं दिया है।
बेशक,मैं उस भवन से बातें करना चाहता हूँ जिस भवन की मुंडेर पर लहराता
तिरंगा यह संदेशा देता है कि उसके अंदर के तख्तोताज पर बैठा व्यक्ति
एक-एक हिंदुस्तानी नागरिक का प्रतिनिधित्व करता है तथा जिनके कन्धों पर
125 करोड़ नागरिकों की जान की हिफाजत करने की जिम्मेदारी है। इसलिए मेरा
मानना है कि हिंदुस्तान के हर नागरिक को यह अधिकार होनी चाहिए कि वह
समानता की ज़मीन पर बैठकर अपने सम्राट से बातें कर सके और उसी समानता की
ज़मीन पर बैठकर मैं आपसे बातें करना चाहता हूँ। अहम् जरूरियात तथा
सनसनीखेज मसलों पर आपसे चर्चा करना चाहता हूँ। अपने विचारों से आपको अवगत
कराना चाहता हूँ। अपने नजरिये से आपको हिंदुस्तान के सच्चे हालात से
वाकिफ कराना चाहता हूँ। क्योंकि दिशाहीन भविष्य की ऊँगली थामकर मैं चलने
को तैयार नहीं हूँ। मेरा
मानना है कि अँधेरे भविष्य को कन्धा देना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है और
मेरी रूहानी ख्वाहिश है कि मैं अपनी दोनों बाहें फैलाकर एक मुक्कम्मल तथा
मजबूत हिंदुस्तान का इस्तकवाल करूँ।
लिहाज़ा मैं आपकी आँखों में ऑंखें डालकर आपसे यह प्रश्न पूछूँगा कि हे भारतवर्ष के सम्राट,आप लोकतंत्र को फ़ांसी के फंदे पर झूलने के लिए मजबूर क्यों कर रहे हैं? पिछले 70 सालों से लोकतंत्र के छाँव में जो करोड़ों लोग साँसें ले रहे हैं उसे आप अपनी
कर्तव्यहीनता की तलवार से क़त्ल क्यों कर रहे हैं? आप अपनी जनता का सुकून
छीनकर एक जहरीली हुकूमत की घाटी में साँसें लेने के लिए उन्हें विवश
क्यों कर रहे हैं? आप दुःख और गरीबी की चादर में लिपटी मौत को जिंदगी
क्यों समझ रहे हैं? क्या हिंदुस्तान के तख़्त पे आप इसीलिए बैठे हैं कि
अपने पुत्र समान जनता के सपनोँ की हत्या कर दें? अगर "हाँ" तो क्यों और
अगर "नहीं" तो फिर हमारे द्वारा हजारों चिट्ठियाँ लिखने के बावजूद आपने
अभी तक हमें मिलने की इजाजत क्यों नहीं दी हैं? आपके जवाब के इंतजार में-------
आपका विश्वासी
दिलीप अरुण "तेम्हुआवाला"
सीतामढ़ी (बिहार)
+919334405517
--------------------
और इससे पहले.....

भारत के राष्ट्रपति के नाम 4300 वां पत्र
तेम्हुआ
11-09-2016
 सेवा में,
आदरणीय महामहिम भारतीय राष्ट्रपति जी, चरणस्पर्श।
हम सही नहीं हैं मगर आपकी सलामती की कामना
करते हैं। हे राष्ट्रपति जी, पिछले ग्यारह [11] वर्षों से हर रोज आपके
नाम हम पत्र लिख रहे हैं और यह हमारा 4300 वां पत्र है। हर पत्र में
मैंने लिखा है कि-"प्लीज हमें आपसे मिलने के लिए थोड़ा -सा वक़्त दिया जाय
तथा हमारे गांव के उन ग़रीबों को उनका वाज़िब हक़ दिया जाय जिनके परिवार के लोग
बिमारी के कारण असमय मर चुके हैं।" मगर आज तक आपने हमें मिलने का वक़्त
नहीं दिया है।
हे मेरे पितातुल्य सम्राट,हम अपने दिल और
दिमाग की दहलीज़ पर दस्तक दे रहे इन सवालों का जवाब तलाश रहे हैं क़ि
संवैधानिक जवाबदेही कुबूल करने वाली "गणतांत्रिक हुकूमत" के बावजूद हमारे
हजारों अर्जीनामा की नामंजूरी क्यों हो रही है? जनता की सेवा तथा कल्याण
में निरत रहने की कसमें खानेवाली "लोकतान्त्रिक हुकूमत" के बावजूद हमारे
हजारों गुजारिशनामा की इनकारी क्यों हो रही है? मुल्क में पिछले 70 सालों
की "खुदमुख़्तारी" के बावजूद हमारे हजारों दरख़्वास्तनामा की नजर अंदाजी
क्यों हो रही है?
बेशक, 15 अगस्त 1947 के दिन ब्रिटानी हुकूमत के हाथों से
सत्ता की बागडोर छीनकर आपके हाथों में इसलिए नहीं सौंपा गया था कि 4300 चिट्ठी लिखने के बावजूद एक प्रजा को अपने राजा से मिलने का मौका न मिल सके। साम्राज्यवादी
राजतंत्र का मुकुट हटाकर आपके सर पर "प्रजातंत्र का ताज" इसलिए नहीं सजाया
गया था कि 4300 चिट्ठी लिखने के बावजूद एक नागरिक को अपने नरेश का दीदार
न हो सके। भारत के तक़दीर का फैसला लन्दन के "बकिंघम पैलेस" के बदले
दिल्ली के "रायसीना हिल्स" से करने का निर्णय इसलिए नहीं लिया गया था कि
4300 चिट्ठी लिखने के बावजूद एक अवाम
अपने सम्राट की चौखट को न चुम सके। अंग्रेजी राज की घोषणा करने वाले
भारतीय आकाश पर लहराते "यूनियन जैक" को नीचे उतारकर वहां अपना "तिरंगा"
इसलिए नहीं लहराया गया था कि 4300 चिट्ठी लिखने के बावजूद एक जनता को
अपने जहाँपनाह का दर्शन न हो सके।
 हे हिन्द सल्तनत के सुल्तान,मैं पूछता हूँ आपसे कि ग़ुलामी के दिनों में
भी एक भारतीय को अपने "वायसराय" से मिलने में मुश्किलों का सामना करना
पड़ता था और आज आज़ादी के दिनों में भी एक नागरिक को अपने  "सम्राट" से
मिलने के लिए "रायसीना हिल्स" की सीढियाँ चढ़ना मुश्किल हो रहा है,तो क्या
यह मान लिया जाय कि हिंदुस्तान के सम्राट इंकार के दरख़्तों के नीचे सो
रहे हैं? क्या यह मान लिया जाय कि हिंदुस्तान के सम्राट की रगों में
जमहूरियत का बुनियादी विचार नहीं दौड़ रहा है? क्या यह मान लिया जाय कि
हिंदुस्तान के सम्राट के दिल में रहम और जज़्बात की आंधियां नहीं उठ रही
है? क्या यह मान लिया जाय कि हिंदुस्तान के सम्राट की आत्मा अपनी पुत्रवत
जनता की करुणा भरी पुकार से नहीं कांप रही है? क्या यह मान लिया जाय कि
हम एक मानवीय बसेरों वाले देश के बाशिंदे नहीं हैं? अगर "हाँ " तो क्यों
और अगर "नहीं " तो हे भारतवर्ष के बादशाह, अगर आपको मुझसे मिलने के लिए
वक़्त नहीं है तो आज मैं आपसे यह प्रश्न कर रहा हूँ कि प्लीज़ बताइये--
"मुल्क की वह अंतिम खिड़की कौन है जहाँ एक मरता हुआ इंसान अपनी जान बचाने
की खातिर रहम की फ़रियाद लगा सके?" आपके जवाब के इंतजार में--
आपका विश्वासी
दिलीप अरुण "तेम्हुआवाला"
सीतामढ़ी (बिहार)
+919334405517

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